मध्यप्रदेशरीवा

जीवन मूल्य की सीख देती कहानियों का मंचन करना सुखद अनुभूति देता है।

कहानियों का रंगमंच एक विमर्श विषय पर गोष्ठी आयोजित हुई ।बचपन की कहानियों से युवा निर्णय होते हैं प्रभावित ।

कला संस्कृति के संरक्षण तथा संवर्धन की दिशा में कार्यरत प्रयास सांस्कृतिक साहित्यिक समिति ने एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन शहर कार्यालय में किया । इस साहित्यिक गोष्ठी में “कहानियों का रंगमंच एक विमर्श” विषय पर परिचर्चा आयोजित हुई । कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई ।

स्वागत उद्बोधन में वरिष्ठ रंगकर्मी हीरेंद्र सिंह ने कहा कि कहानियों के मंचन में चुनौतियां कम सृजनात्मकता की संभावना ज़्यादा निहित हैं, जरूरत है कहानियों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किए जाने की, हम बचपन से ही माता पिता, दादा दादी या किसी न किसी के द्वारा कहानी सुनते आए हैं, यह कहानी हमे इतना प्रभावित करती हैं कि हम अपने जीवन के निर्णय तक इनसे जुड़े अनुभव के आधार पर भी ले लेते हैं । भारत के साहित्यकारों ने इतनी ज्ञान परक तथा प्रेरक कहानियों की रचना की है । इनके मंचन के द्वारा हम युवा पीढ़ी को बेहतर दिशा दे सकते हैं ।

कार्यक्रम का विवरण बताते हुए प्रयास संस्था के सदस्य अनीश ने बताया कि साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक समिति प्रयास विगत 30 वर्षों से अधिक समय से विंध्य की माटी में कला बीज को सहेजने के कार्य में लगी है । इसका एक प्रमाण यह भी है कि रीवा शहर में हिंदी कहानियों के मंचन के विधिवत प्रशिक्षण तब शुरू हुए जब प्रयास संस्था के आमंत्रण पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक मशहूर रंग निर्देशक दिनेश खन्ना साहब ने यहां कार्य शाला की थी, इस कार्यशाला में सबसे पहले मुंशी प्रेमचंद की पांच कहानियों के कोलाज के जरिए नाटकों का मंचन किया गया था। जिनमें ठाकुर का कुंआ, सवा सेर गेहूं, पूस की रात, कफ़न नाटक शामिल थे। अब एक बार फिर जरूरत है कि हिंदी कहानियों को मंच में बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया जाए ।

गोष्ठी में कलाकार पुष्पराज पटेल के प्रश्न का उत्तर देते हुए विशेष वक्ता राजेश शुक्ला ने कहा कि कहानियों की विषयवस्तु और संप्रेषणीयता पूर्ण कालिक नाटकों की तरह ही होती है इनको मंचित करने में कम संसाधन भी लगते हैं । इन्होने अपने एकल कथा मंचन ” बैकलबा ” के अनुभव साझा किए यह बघेली बोली की कहानी “बैइकलबा” पर आधारित था । टीवी कलाकार राजेन्द्र सोनी, ने बताया कि जब हिंदी की कहानियां इतनी प्रभावी फिल्मों का आधार हैं, तो फिर रंग मंच में तो यह कमाल ही कर देंगी ।

योगाचार्य राजेश सिंह ने कहा कि मैंने जितने भी कहानिकारों को पढ़ा है उनमें मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में नाटकीय तत्व ज्यादा देखने को मिलते हैं । मुंबई से आए कलाकर सचिन कर्ण ने डेढ़ इंच ऊपर नाटक तथा मुंबई में देवेन्द्र राज अंकुर द जोगिया राग और लावारिस नहीं मेरी मां है के मंचनों का ज़िक्र किया तथा अपने अनुभव साझा किए । प्रयास रंग समूह द्वारा आयोजित इस साहित्यिक गोष्ठी में मंच संचालन युवा कलाकार कमल पाण्डेय द्वारा तथा आभार अनीश शुक्ला द्वारा किया गया ।

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